उस पार

Sushil Kumar
11
साभार गूगल 

उस पार 
निविड़ एकांत में
सुस्ताने दो मुझे

फटे हुए पाल के झकोरे और
नशेमन मल्लाह की मजबूर आदतों की
सवारी की है मैंने

थक चुका हूँ हिचकोले खा-खा
लगभग पतवार-विहीन-सा नौका में
सरद-गरम इलाके से लगातार गुजरता हुआ

कान बहरे हो गये हैं अपने
सागर के कोलाहल और खेवनहार के 
जल-यात्राओं के किस्से सुन-सुन

बेहद डरा हुआ भी हूँ
जल-दस्यु और सुनामी की दंतकथाओं से

क्या सुनाऊँ भाई
इस यात्रा की कहानी -
उसकी नाव में दर्जनों पेबन्द थे
उसकी बतकही में सैकड़ों झूठ थे
उसके नायक बहुत चापलूस थे
नायिका बहुत बदचलन थी

वह खे रहा था अपनी डोंगी
उठती लहरों में
गिरती पछाड़ों में
न जाने किन-किन टापुओं से होता हुआ
बेसुरा आलापता
ले चलता हुआ दिशाहीन मुझे
भँवरों के उत्ताल तरंगों के समीप
अथाह जल-राशि में
जहाँ अक्सर अपना सामना
शॉर्क, ह्वेल, ऑक्टोपस जैसे खतरनाक जीवों से होता रहा

जरा साँस लेने दो,
जुड़ाने दो थोड़ी देर
किनारे के नीरव निशांत में
और लौट आने दो अपने बीते समय में वापस -
कितनी दूर निकल आया हूँ अपने गाँव से
जिसकी तलहटी में मयुराक्षी (नदी) का आँचल पसरा है
जिसके सिर पर हिजला (पहाड़) का मुकुट शोभता है
जहाँ पहाड़ी गड़ेरियों की बाँसुरी की धुन सुनता हूँ
तो कहीं भोर की ओस भरी बलुई नदी पार कर रहे
माल-मवेशियों के पद-चाप और
पहाड़ी बालनों के गीत

जंगल में महुआ गिरने की 
टप-टप आवाज और रह-रहकर आती
कोयलों की कूक ने तो
मुझे कोर दिया है भीतर तक,
लाचार कर दिया है
अपने गाँव लौटने को, लौटने दो मुझे अपने देस

पर मौसम और मल्लाह का मिज़ाज भाँप
सागर का रूक्ष तेवर देख
ठिठकन-सी हो रही है
उसकी नाव में दुबारा सवार होने में
चुहटनसी हो रही है मेरे रोम-रोम में।
Photobucket

एक टिप्पणी भेजें

11 टिप्पणियाँ

टिप्पणी-प्रकोष्ठ में आपका स्वागत है! रचनाओं पर आपकी गंभीर और समालोचनात्मक टिप्पणियाँ मुझे बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। अत: कृप्या बेबाक़ी से अपनी राय रखें...

  1. Shaandaar kavita kavita mun ko
    sparsh kiye binaa nahin rah sakee .

    जवाब देंहटाएं
  2. प्राकृतिक बिम्बों और मिथक प्रतीकों के सहारे मानव जिन्दगी के उतार चढ़ावों की थाह लेती कविता

    जवाब देंहटाएं
  3. बिछुड़ने का गम, मिलने का प्रयास और जीवन के जन्झावात. बहुत सुंदर कविता. शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  4. भाई सुशीलजी, नेट पर आपको पुन: सक्रिय देख मन को बहुत प्रसन्नता हुई। आपकी यह कविता बहुत कुछ कहती है। आपने जो बिम्ब और जो मिथक लिए हैं वे सब आपकी इस कविता को और अधिक अर्थवान करते प्रतीत होते हैं… आपको मेरी शुभकामनाएं…

    जवाब देंहटाएं
  5. धन्यवाद भाई सुभाष नीरव जी, आपका इस तरह यहाँ आकर मेरी रचना पढ़ना और मुझे प्रेरणा देना मुझे काफ़ी अच्छा लगा, बहुत अभिभूत हुआ ।

    जवाब देंहटाएं
  6. उस पार बहुत अच्छी कविता है . जीवन की सच्चाईयों से रूबरू कराती है यह . Thank u for this poem.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर सार्थक रचना...


    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  9. थकना ...रुकना मगर फिर ना लौट पाने की मजबूरी ...
    प्रकृति और भावनाओं का अच्छा तालमेल !

    जवाब देंहटाएं
  10. वह पार जितना लुभाता है,उतना ही डराता भी है...

    क्या सुन्दर शब्द चित्र खींचे हैं आपने....वाह...वाह...वाह...

    बहुत ही सुन्दर,मन को छूती रचना...

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!