हृदय की मौन भाषा चाहिए

Sushil Kumar
8
गूगल से साभार 
विता के लिये
सिर्फ़ शब्द नहीं 
मुझे हृदय की मौन भाषा चाहिए
मन की अदृश्य लिपियों में गढ़ी
सुगबुगाते हुए और 
अभिव्यक्ति को बेचैन
भावों के अनगिन तार दे दो मुझे

कविता के लिये
मात्र आँखों का कँवल नहीं
उसका जल चाहिए मुझे
उनमें पलते सपनों की आहट
कोई सुनाओ मुझे

सुबह से शाम तक
दो जून रोटी के वास्ते
जिन कायाओं ने रच रखी है
पूरी दुनिया में श्रम का संगीत
उसका नाद चाहिये, ताल चाहिए

मुझे स्वेद से लथ-पथ बेकसों की
बेकली भी चाहिए
कविता के लिये

मेरे शब्द तुम 
गगनचुंबी इमारतों में 
मजबूर औरतों की कराह सुनो और 
गहो कविता में  
जो गिरती रात के साथ,
गहरी और घनी होती जा रही है 

अनकही बहुत सी कहनी है 
इसलिये शब्दों का इन्द्रजाल नहीं
उसकी तह में पैठे मुझे 
नए अनुभव-अनुभाव चाहिए

नहीं चाहिए मुझे 
दराजों में दीमक चाट रहे अधमरे शब्द
जिनसे मयखाने में बैठ रोज़ लिखी जा रही
जनवाद की बेहद झूठी कविताएँ

कविता में तो मुझे
ज़िन्दा टटका लोक का ठेठ शब्द चाहिए
आहत आत्माओं का
अनाहत स्वर और नव लय चाहिए
Photobucket

एक टिप्पणी भेजें

8 टिप्पणियाँ

टिप्पणी-प्रकोष्ठ में आपका स्वागत है! रचनाओं पर आपकी गंभीर और समालोचनात्मक टिप्पणियाँ मुझे बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। अत: कृप्या बेबाक़ी से अपनी राय रखें...

  1. कविता में जिंदगी के स्वर और सुर चाहिए !

    जवाब देंहटाएं
  2. यह कविता एक सच्चे कवि की ईमानदारी, जन से जुड़ने की इच्छा और उसके सामाजिक सरोकारों की ओर संकेत करती है। आज बहुत सी कविताएं इसलिए जनविमुख होती हैं क्योंकि उनमें शब्दों के माध्यम से झूठा आडम्बर रचा जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  3. अनकही बहुत सी कहनी है
    इसलिये शब्दों का इन्द्रजाल नहीं
    उसकी तह में पैठे मुझे
    नए अनुभव-अनुभाव चाहिए.......

    हृदय को छूने वाली रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  4. सशक्त, सुन्दर अभिव्यक्ति!

    जवाब देंहटाएं
  5. अनकही बहुत सी कहनी है
    इसलिये शब्दों का इन्द्रजाल नहीं
    उसकी तह में पैठे मुझे
    नए अनुभव-अनुभाव चाहिए


    बहुत सुंदर कविता गूढ़ भाव सार्थक सन्देश.

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!