सब आए सब चले गए

Sushil Kumar
3
आदमी कहता -
घर मेरा
घर कहता - कौन मेरा
सब आए सब गए
सजाया मुझे सँवारा मुझे
रंगों से तहज़ीब से नक्काशी से
मैं बिखरा टूटा बहा
फिर जुड़ा कि रहेगा मेरा मालिक हमेशा
इस आस से आँधी से जुझा बतास को सहा
ग्रीष्म की तपन तो कभी घनघोर बारिश को झेला
पर मुसाफिर की तरह आए सब
और सब चले गए |

 photo signature_zps7906ce45.png

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

टिप्पणी-प्रकोष्ठ में आपका स्वागत है! रचनाओं पर आपकी गंभीर और समालोचनात्मक टिप्पणियाँ मुझे बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। अत: कृप्या बेबाक़ी से अपनी राय रखें...

एक टिप्पणी भेजें

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!