बिचौलिया - तंत्र

Sushil Kumar
1
 photo signature_zps7906ce45.pngजन का यह कैसा तंत्र है कि
उसके और तंत्र के मध्य लोगों की जो जमात है
वह जन और तंत्र दोनों का विध्वंसक है
फिर भी जनता उसे माला पहनाती है
उसकी जय-जयकार करती है

नहीं यह जनतंत्र नहीं,
बिचौलिया - तंत्र है |






एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

टिप्पणी-प्रकोष्ठ में आपका स्वागत है! रचनाओं पर आपकी गंभीर और समालोचनात्मक टिप्पणियाँ मुझे बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। अत: कृप्या बेबाक़ी से अपनी राय रखें...

एक टिप्पणी भेजें

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!