कविता शब्दों से नहीं रची जाती

Sushil Kumar
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विता शब्दों से नहीं रची जाती
भ्यांतर के उत्ताल तरंगों को उतारता है कवि 
कागज के कैनवस पर 

एक शब्द-विराम के साथ /

कविता प्रतिलिपि होती है उसके समय का 
जो साक्षी बनती है शब्दों के साथ उसके संघर्ष का 
जिसमें लीन होकर कवि जीता है अपना सारा जीवन
बिन कुछ कहे,
और जीने को अर्थ देता है /

जब कविताएँ कान और हृदय से नहीं,
पेट और दिमाग से सुनी जाती हो 
शब्द कवि के लिए प्रतीक-चिन्ह नहीं - 
एक प्रश्न-चिन्ह बन कर रह जाता है
 उसके जीवन का |
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