बाँसलोय में बहत्तर ऋतु

Sushil Kumar
4
साभार : गूगल 
(संथाल परगना की एक पहाड़ी नदी की व्यथा-कथा)
१) एक-

संथाल परगना के जंगल
पहाड़ और बियावानों में
भटकती हुई
एक रजस्वला नदी हो तुम
नाम तुम्हारा बाँसलोय है
बाँस के झाड़-जंगलों से
निकली हो

रेत ही रेत है तुम्हारे गर्भ में
काईदार शैलों से सजी हो
तुम्हारे उरोज पर
रितु किलकती है केवल
बरसात में
तब अपने कुल्हे थिरकाती तुम
पहाड़ी बालाओं के संग
गीत गाती
अहरह बहती हो

पहाड़ी बच्चे तुम्हारी गोद में खेलते,
टहनियों की ढेर चुनते हैं तब,
भोजन-भात पकता है
पहाड़ियों के गेहों में
उनके उपलों से।

कलकल निनाद का निमंत्रण पाकर
दक्षिणी छोर से
क्रीड़ा करती हुई
मछलियाँ
मछलियाँ भी आ जाती हैं
और पत्थरों की चोट से
अधमरी होकर
रेत के खोह में समा जाती हैं
या फिर, मछुआरों के जाल में फंस जाती हैं

इतनी चंचला, आवेगमयी होती हो
आषाढ़ में तुम कि,
कोई नौकायन भी नहीं कर सकता
ठूँठ जंगलों से रूठकर
कठकरेज मेघमालाएँ पहाड़ से उतरकर
फिर जाने कहाँ बिला जाती हैं
और तुम अबला-सी मंद पड़ जाती हो !

जेठ के आते-आते
क्षितिज तक फैली हुई पतली-सी
रेत की वक्र रेखा भर रह जाती हो
तब लगता है तुम्हारे तट पर
ट्रक-ट्रैक्टरों का मेला
आदिवासी औरतें अपने स्वेद-कणों से
सींचती हुई तुम्हें
कठौती सिर पर लिये
उमस में बालू ढोती जाती हैं।

सूर्य की तपिश में हो जाती हो
तवे की तरह गर्म तुम।
उनके पैर सीझ जाते हैं तुम्हारे अंचल में
चल-चल कर।
(भाग -२ अगले रविवार को पढ़ें।)

एक टिप्पणी भेजें

4 टिप्पणियाँ

टिप्पणी-प्रकोष्ठ में आपका स्वागत है! रचनाओं पर आपकी गंभीर और समालोचनात्मक टिप्पणियाँ मुझे बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। अत: कृप्या बेबाक़ी से अपनी राय रखें...

  1. अत्यन्त खूबसूरत शब्दावली के प्रयोग से विशुद्ध प्रभावमयी कविता । दूसरे भाग की प्रतीक्षा रहेगी ।

    क्या यह कविता कहीं छपी है । इसे पढ़ते हुए लगा कि पहले भी पढ़ चुका हूँ इसे । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह आप ने नदी का कितना सुंदर रुप दिखाया. बहुत अच्छा लगा,
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. एक जीवित कविता .......कुछ देर के लिये भूल गये खुद को आपके भावमय कविता के साथ ......बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. हिमांशु जी, २० सितम्बर, रविवार को इस कविता का दूसरा भाग आप पढ़ पायेंगे।

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!