तुम मिट्टी के लोग

Sushil Kumar
9

(मुंगेर-जमालपुर में सूखे की मार झेल रहे किसानों की व्यथा-कथा सुनकर)

तुम धरती के सीधे-साधे लोग
क्या जानो पृथ्वी पर
भूख कौन उपजाता है


खाँखर धरती सूना आकाश निहारते
कपाल ठोंकते
दैव कोसते

रितुओं की ताक में
जिन दरख्तों की ठेक में
ज़िन्दगी गुजार दी तुमने
कितनी गहरी धँसी हैं जड़ें
तुम्हारी जमीन में उनकी
पता है इस खरकते मौसम में भी
उनकी शाखें क्यों हरी है ?

अँखुआने के पहले ही
ठूँठ पड़ी खरीफ की उपज
सरकारी मुलाजिमों ने क्यों
बाईस मन प्रति एकड़ दिखला दिये ?

तुम तमाम उम्र
श्रम में सक्रिय, चुस्त
और गाय सी शील वाले
क्या जानो उनके कद
जिनके ईशारे पर
हजारो हेक्टेयर जमीन
फाईलों में सींच दिये गये

समझ सकते हो क्या
मिट्टी के साथ बाजीगरी का खेल ?

घोड़ों की टापों में नालें
क्यों ठोंकी जाती है
बैलों को नाधा क्यों जाता है
क्यों कुत्ते के आगे रोटी डालने से पहले
पालतु बने रहने की तमीज़ सीखायी जाती है
बता सकते हो ?

तुम तो ठहरे मिट्टी से प्यार करने वाले
मिट्टी पर मरने वाले
मिट्टी मे मिलकर धूल बन जाने वाले लोग
तुम्हें क्या मालुम कि
तुम्हारी काया जब
पस्त होती है खेतों मॆं
यह नागपाश रच दिया जाता है
तुम्हारे चारो ओर

हाथी के दाँत होते विकास योजनाओं से आगे
उन महाजनों के विष के दाँत
तुम क्या जानो
जो ताउम्र तुम्हारी पीठ पर गड़े होते हैं !
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9 टिप्पणियाँ

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  1. भाई सुशील जी, ऐसी कविता आम जन से सच्चा सरोकार रखने वाला कवि ही लिख सकता है। आपकी यह कविता मिट्टी और मिट्टी से जुड़े भोले भाले मेहनकश लोगों को लेकर जो सवाल उठा रही है, उनके उत्तर देने की कभी कोशिश नहीं की गई। सत्ता और व्यवस्था जिन निरीह आम जन की पीठों पर पैर रख बनती है, वह ऐसे लोगों के हित और उत्थान के बारे में कभी नहीं सोचती। आपकी कविता की संपूर्ण संवेदना ऐसे ही दबे-कुचले मिट्टी के लोगों के साथ है, जिन्हें आज नहीं कल जागरूक होना ही होगा ताकि वे अपने प्रति होती बेइन्साफ़ी को जान समझ सकें और उसके खिलाफ़ एक जुट हो सकें।

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  2. प्रस्तुत कविता के संदर्भ में आपके विचार काफ़ी अर्थवान और प्रासंगिक हैं। धन्यवाद भाई सुभाष नीरव जी।

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  3. तुम तमाम उम्र
    श्रम में सक्रिय, चुस्त
    और गाय सी शील वाले
    क्या जानो उनके कद
    जिनके ईशारे पर
    हजारो हेक्टेयर जमीन
    फाईलों में सींच दिये गये …

    सीधे-सादे लोग अपने ही जीवन के साथ सत्ता के इस परपीड़क शर्मनाक खेल से कितने अनजान हैं…!!! आपकी यह कविता बखूबी इस तथ्य को रेखांकित करती है। बधाई!

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  4. एक बहुत अच्छी रचना,लेकिन एक नंगा सत्य, धन्यवाद

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  5. Sampooran sanvedna jagaatee hai aapkee kavita . Jan kavi
    ho to aap jaesa .

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  6. सपाट बयानी करती हुई गंभीर और अर्थवान कविता 'तुम मिट्टी के लोग'..
    उषा राजे सक्सेना
    54 Hill Rd, Mitcham, CR4 2HQ, UK

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  7. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. मिट्टी में लिपटे मिट्टी से जुड़े लोग कई बार महाजनों के विषैले दांतों के जहर से मिट्टी के ही हो जाते हैं ...
    श्रम पर व्यवस्था की मार का कटु सत्य !

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