सोनचिरई

Sushil Kumar
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सोनचिरैया


फुदकती थी
बहुरंगी सोनचिरई
मेरे आँगन – बहियार- तलैया में रोज 
टुंगती थी दाना,
गाती थी गीत
और मुझसे मिलने
सोनचिरई के संग – संग
गाती 
ठुमकती
चली आती थी तुम उसे
दाना खिलाने के बहाने

फिर एक दिन वह उड़ गई
और कभी न लौटी

तुमने कहा –
जरूर बहेलिये के जाल में
जा पड़ी होगी वह

सहसा विश्वास न हुआ मुझे
पर तुम भी जब न लौटी शहर से
अपने गांव
इतने बरस बाद भी 

तो सचमुच लगने लगा कि
सोनचिरैया
को हमेशा के लिए
फाँस ले गए बहेलिये |  

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10 टिप्पणियाँ

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  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो
    चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. तो सचमुच लगने लगा कि
    सोनचिरैया
    को हमेशा के लिए
    फाँस ले गए बहेलिये ने |
    यही सच है।

    जवाब देंहटाएं
  3. पंछी तो सैयाद के हाथों पड़ गए ...पर वो क्यों नहीं आए ... उम तो लौट आतीं ...बहुत खूब ..

    जवाब देंहटाएं
  4. सुशील कुमार जी ,आप की यह कविता बहुत अच्छी लगी .सोनचिरई के बहाने बहुत कुछ कह दिया .

    जवाब देंहटाएं
  5. सुरेश यादव wrote: सुशील कुमार जी ,आप की यह कविता बहुत अच्छी लगी .सोनचिरई के बहाने बहुत कुछ कह दिया |

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी कविता के साथ लगा चित्र सोनचिरैया का नहीं है.
    कृपया, दिव्यनर्मदा में निम्न बालगीत के साथ प्रकाशित चित्र को देखें. ऐसा ही चित्र भारत सरकार ने सोनचिरैया पर निकले डाक टिकट पर भी छापा है.
    आपकी सुविधा के लिए इसे दिव्यनर्मदा पर दुबारा दे रहा हूँ.

    रविवार, ७ मार्च २०१०
    बाल गीत: सोन चिरैया ---संजीव वर्मा 'सलिल'


    सोनचिरैया फुर-फुर-फुर,
    उड़ती फिरती इधर-उधर.
    थकती नहीं, नहीं रूकती.
    रहे भागती दिन-दिन भर.

    रोज सवेरे उड़ जाती.
    दाने चुनकर ले आती.
    गर्मी-वर्षा-ठण्ड सहे,
    लेकिन हरदम मुस्काती.

    बच्चों के सँग गाती है,
    तनिक नहीं पछताती है.
    तिनका-तिनका जोड़ रही,
    घर को स्वर्ग बनाती है.

    बबलू भाग रहा पीछे,
    पकडूँ जो आए नीचे.
    घात लगाये है बिल्ली,
    सजग मगर आँखें मीचे.

    सोन चिरैया खेल रही.
    धूप-छाँव हँस झेल रही.
    पार करे उड़कर नदिया,
    नाव न लेकिन ठेल रही.

    डाल-डाल पर झूल रही,
    मन ही मन में फूल रही.
    लड़ती नहीं किसी से यह,
    खूब खेलती धूल रही.

    गाना गाती है अक्सर,
    जब भी पाती है अवसर.
    'सलिल'-धार में नहा रही,
    सोनचिरैया फुर-फुर-फुर.

    * * * * * * * * * * * * * *
    = यह बालगीत सामान्य से अधिक लम्बा है. ४-४ पंक्तियों के ७ पद हैं. हर पंक्ति में १४ मात्राएँ हैं. हर पद में पहली, दूसरी तथा चौथी पंक्ति की तुक मिल रही है.
    चिप्पियाँ / labels : सोन चिरैया, सोहन चिड़िया, तिलोर, हुकना, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', great indian bustard, son chiraiya, sohan chidiya, hukna, tilor, indian birds, acharya sanjiv 'salil'

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