सुगनी , तुम्हारा इस तरह
उस
शहराती अजनबी संग दिल्ली चली जाना
और
वही नर्स की नौकरी पर रह जाने के फैसले के बाद
गाँव की लड़कियों ने दुआर तक आना बंद कर दिया
तुलसी
की पौध सुखने लगी ,
तुलसी-चौड़े
पर काई जाम गई
पूजाघर
के देवताओं के आदर कम हो गए
घर–दालान
की हब-गब शांत हो चली
फूलों
की क्यारियाँ मिट चली
पनघट
भी अपना सूना हो गया
और
महुआ के फूल अनाथ हो गए
मेरा मन बहुत उदास रहता है
न
खेत जाने का मन करता है
न
धान पीटने का
गाँव
के छोरे तुम्हारे बारे में
कैसी
–कैसी छींटाकसी करते हैं !
कहते
हैं-
शहरी
बाबू ने तुमको फुसला लिया
कहो
न सुगनी - झूठ है यह सब
कब
आओगी गाँव
बुरा
हाल है यहाँ सब का
नहीं
आ पा रही
तो
मैं ही शहर चला जाऊंगा तुम्हें लेने
बहनें
पूछती हैं
कब
लौटेगी सुगनी परदेस से
तुम
बिन बाहा - परब बेकार बीत गए
नगाड़े
- तुरही के ताल बिगड़ गए
टूसु
के गीत बेसुरे हो गए
अमलतास
– साल - पलास के फूल यूँ ही झड़ गए
सोनचिरैया
एकदम - से गायब हो गई
गोहाल
में दिन उठने तक
गायें
फँसी रहती है गोबर में
बांसुरी
पर भी धूल जम रहे
और
तुम्हारे सब गीत
भूलता
जा रहा हूँ मैं
धीरे-धीरे
मांझी
- थान पर आवाजाही भी कम हो गयी
कोयल
का कूकना अब सुहाता नहीं
न
जंगल में मोर का नाचना
बकड़ियाँ
मिमयाती है तो लगता है
रो
रही है
गायें
पगुराती है तो लगता है
भीतर
से बेचैन हैं बीमार हैं
कुत्ता
भी किसी अनजान अपशकुन से
मानो
रात - बे - रात भूंकता नहीं, रोता है |
तुम्हारा
यहाँ से जाना
गाँव
से खुशी का उजड़ जाना है
सब
सखी - सहेलियाँ , माँ – बापू
और
काका भी तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं
शहर
से तुम्हारे वापस लौट आने की
कहो
न सुगनी कब
लौटोगी
अपना गाँव , कौन सा जादू
कर
दिया उस परदेसी बाबू ने तुम पर
या
फिर किस परेशानी में फँसी हो
कि
लौट नहीं पा रही इतने दिन बाद भी
पूरा
पहाड़ – नदी – झरना – ताल – तलैया
यानी
कि तराई पर का पूरा गाँव ही
उजाड़
सा दीखता है तुम बिन
सब
के सब तुम्हारे लौटने की
बाट
जोह रहे हैं कब से !

विरह की वेदना.....शब्द दर शब्द...बहुत उम्दा रचना....
जवाब देंहटाएंइसे देखें:
नहीं आना चाहती
तो मैं ही शहर चला जाऊंगा तुम्हें लेने
अगर नहीं आना चाहती फिर तो यह सुगनी के साथ जबरदस्ती हो जायेगी...शायद न आ पा रही होती तो हरिया का लेने जाना ठीक लगता.
जैसा मुझे लगा...बाकी जैसा आप उचित समझें.
सही है, समय बदल गया है, अब पत्नी विदेश में कारोबार करती है, विदेशी बाबुओं के संग व्यापार करती है, पति गाँव में खेती सम्भाल रहा होता है....
जवाब देंहटाएं-- हरिराम
BAHUT KHOOB !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुंदर दिल को छू गई आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंशहर जाकर सब-कुछ बदल जाता है,सुगनी भी समझे शायद पर आज नहीं बहुत देर में !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा है ..
जवाब देंहटाएंभावुक कर देने वाली कविता !!